ऋग्वेद काल का धार्मिक जीवन

Religious Life of Rigveda Period

ऋग्वेद काल का धार्मिक जीवन (Religious Life of Rigveda Period) : विद्यादूत के इस लेख में हम ऋग्वेदकालीन धर्म (धार्मिक जीवन) पर प्रकाश डालेंगें | किसी भी समाज को सम्यक रूप से समझने के लिए हमे उसके धर्म को समझना अतिआवश्यक  है | धर्म मानव की भक्ति, भावना, विश्वास और श्रद्धा से सम्बन्धित होता है | यह मानव का अलौकिक शक्ति से सम्बन्ध जोड़ता है साथ ही यह मानव के व्यक्तिगत, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन को भी प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है |

किसी भी धर्म का आधार भक्ति, श्रद्धा, पवित्रता, भय, आवश्यकता (किसी असाधारण चीज को पाने की लालसा जैसे मोक्ष, सन्तान, युद्ध-विजय आदि), है | धर्म ही व्यक्ति को नैतिकता और अनैतिकता का ज्ञान कराता है | वास्तव में धर्म मानव और समाज का एक अभिन्न अंग होता है |

प्रतिदिन व्यवस्थित ढंग से सूर्य, चन्द्रमा का उदय व अस्त होना, निश्चित समय पर ऋतुओं (सर्दी, गर्मी, वर्षा) आगमन आदि क्या मात्र घटनाएँ है अथवा इनका कोई सूत्रधार है ? इन प्रश्नों ने लोगों के मन को आन्दोलित किया और फलस्वरूप उनके मन ने इन घटनाओं के कर्ता के रूप में एक सर्वशक्तिमान शक्ति को जन्म दिया, जिसे ईश्वर का नाम दिया गया | 

ऋग्वेद काल का धार्मिक जीवन (Religious Life of Rigveda Period)

ऋग्वैदिक आर्य मूर्तिपूजक नही थे और न वे अपने ईश्वर की उपासना किसी मन्दिर में करते थे | यद्यपि ऋग्वेद में एक स्थान पर ‘इंद्र की मूर्ति’ का वर्णन है (जिसमे उसकी कीमत दस गायें बताई गयी है) तथापि इसे मूर्ति पूजा से नही जोड़ा जा सकता है |

ऋग्वेद कालीन आर्य सामान्यतया प्राकृतिक शक्तियों की ही उपासना भिन्न-भिन्न देवताओं के स्वरूप में करते थे | आर्यों ने प्रकृति की रहस्यमय शक्तियों से प्रभावित होकर इनकों दैहिक रूप देकर इनमे मानव व पशु के गुणों को आरोपित किये |

वे देवताओं की उत्पत्ति तो मानते थे लेकिन उनकी मृत्यु को नही मानते थे | उन्होंने अपने देवताओं की कल्पना ऐसे दिव्य प्राणी के रूप में की जिन्हें अमरत्व प्राप्त था |

सामान्यतया आर्यों के हर कबीले या गोत्र का अपना अलग देवता होता था, जो उनके अनुसार उनके कबीले और उनकी रक्षा करता था और मनोकामना की पूर्ति करता था |

प्रारम्भिक वैदिक काल में आर्य अपने ईश्वर से सुख-समृद्धि और भौतिक-लाभ मांगते थे | वे पुत्र, पशु, अनाज, आरोग्य आदि को पाने के लिए अपने देवताओं की उपासना करते थे |

पाठक ध्यान दे कि ऋग्वेद काल में जन्म-मृत्यु के बन्धनों से मुक्ति अर्थात् मोक्ष, आध्यात्मिक उत्थान आदि के लिए ईश्वर की उपासना नही की जाती थी | पुनर्जन्म की भावना इस काल में देखने को नही मिलती है |

इस काल में ईश्वर की उपासना मुख्य रूप स्तुति पाठ और यज्ञ द्वारा की जाती थी | ऋग्वेद में अनेक देवताओं की स्तुति में लिखे गये सूक्त (गीत) मौजूद है |

स्तुतिपाठ सामूहिक भी किया जाता था और व्यक्तिगत भी | यज्ञ में बलि दी जाती थी जिसमे मांस, दूध, अन्न, घी, शाक, सोमरस आदि वस्तुएं अर्पित की जाती थी |

इस समय का समाज मुख्य रूप से पशु-पालक था, इसलिए पशु की बलि सामान्य बात थी |

पाठकों को यह जानकर शायद आश्चर्य ही होगा कि इस काल में यज्ञ में आहुति देते समय किसी मन्त्र का उच्चारण (जैसाकि आजकल होता है) नही किया जाता था | उस समय ये भी नही माना जाता था कि किसी मन्त्र से बड़ा कोई चमत्कार हो सकता है, यद्यपि उत्तर-वैदिक काल में ऐसा माना जाने लगा था |

ऋग्वेद काल के प्रमुख देवता

वैदिक धर्म बहुदेवतावादी था | ऋग्वेद में देवताओं की कुल संख्या तैतीस बताई गयी है |

वैदिककालीन देवताओं को स्थान के अनुसार तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है | ये तीन श्रेणियां है – पृथ्वी के देवता अर्थात् पृथ्वी स्थानीय, अन्तरिक्ष के देवता अर्थात् अंतरिक्ष स्थानीय और आकाश के देवता अर्थात् द्यौ या आकाश स्थानीय |

पृथ्वी के देवता (पृथ्वी स्थानीय)

पृथ्वी के देवता में पृथिवी (पृथ्वी), अग्नि, सोम, बृहस्पति, नदियाँ आदि आते है |

अन्तरिक्ष के देवता (अंतरिक्ष स्थानीय)

अन्तरिक्ष के देवता में इंद्र, रुद्र, मरुत, वायु व वात (वायुदेवता) पर्जन्य (वर्षा का देवता), यम, प्रजापति, अदिति, आपः आदि आते थें |

आकाश के देवता (द्यौ या आकाश स्थानीय)

जबकि आकाश के देवता में द्यौस, वरुण, मित्र, सूर्य, चन्द्रमा, सवितृ (सावित्री), पूषन, विष्णु, आदित्य, उषा, अश्विन आदि |

एकेश्वरवाद की झलक

वैदिक धर्म में एकेश्वरवाद की भी झलक मिलती है | एक समय में एक ही देवता को सर्वश्रेष्ठ मानकर उसकी पूजा की जाती थी |

जिस देवता की पूजा होती थी उस देवता को अन्य देवता से श्रेष्ठ व शक्तिशाली मानकर पूजा जाता था | उस समय अन्य देवता गौण हो जाते थें |

ऋग्वैदिक काल में कभी इन्द्र, कभी अग्नि, तो कभी वरुण को सर्वश्रेष्ठ मानकर स्तुति की गयी है | ये कभी परम देवता बन जाते तो कही महत्वहीन बन जाते |

मैक्समूलर ने वैदिक धर्म को एक नया शब्द ‘हीनोथीज्म’ (Henotheism) कहा है, जिसे सामान्य भाषा में ‘एकाधिदेववाद’ कहा जा सकता है |

सामान्य शब्दों में ‘हीनोथीज्म’ का अर्थ है – एक-एक देवता को बारी-बारी से सर्वश्रेष्ठ (सर्वोच्च) देवता मानकर उनका गुणगान करना, उपासना करना | ऋग्वेद में कई मन्त्र एकेश्वरवाद का समर्थन करते है उदाहरणार्थ “एक ही सत् है, विद्वान लोग उसे अनेक मानते है, कोई उसे अग्नि कहता है, कोई यम और कोई मातरिश्वा (वायु) [ऋग्वेद 1,164,46] | 

इन्द्र

सभी देवताओं में इन्द्र, अग्नि और वरुण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान था | ऋग्वेद में सबसे अधिक प्रतापी देवता इन्द्र था |

ऋग्वेद में इंद्र को 250 सूक्त (गीत) समर्पित किये गये है, जो ऋग्वेद के सूक्तों की संख्या का लगभग चतुर्थांश है | यह युद्ध का देवता था, जिसका प्रिय हथियार वज्र (Thunder) था | इसी हथियार के कारण इसे वज्रबाहु, वज्रभृत और वज्रिन की उपाधियाँ प्राप्त हुई | इंद्र को तूफान व मेघ का भी देवता कहा गया है |

इन्द्र शत्रुओं को हराकर उनकी सम्पत्ति पर अधिकार कर लेता था | इसे ‘पुरन्दर’ अर्थात पुरो (दुर्गों) को तोड़ने वाला कहा गया है | इसे बादल या वर्षा का देवता और विद्युत् का देवता भी कहा गया है | इंद्र ने वृत्र राक्षस को मारा था इसलिए इसे वृत्रहन् भी कहा जाता है |

वर्षा के लिए आर्य इन्द्र की प्रार्थना करते थे | इसकी पत्नी का नाम इन्द्राणी था | इंद्र का पिता द्यौस है और अग्नि इसका यमज भाई है | इसे सोमरस अत्यधिक प्रिय था | कहा गया है कि जैसे एक जलाशय जल से पूर्ण रहता है, वैसे ही इन्द्र का उदर (पेट) सोमरस से परिपूर्ण रहता है | मरुत इसका सहयोगी है | कही कही इन्द्र व मरुत की एक साथ स्तुति मिलती है |

अग्नि

अग्नि को दूसरा स्थान दिया गया, इसे ऋग्वेद में कुल 200 सूक्त समर्पित है | अग्नि देवताओं और मनुष्यों के बीच मध्यस्थ या संदेशवाहक का कार्य करता था |

आर्यों का विश्वास था कि अग्नि में अर्पित की जाने वाली आहुतियाँ धुआं के रूप में आकाश मे जाती है और देवताओं को प्राप्त हो जाती है | इसीलिए इसे ‘देवताओं का मुख’ भी कहा गया है |

अग्नि को सूर्य का ही रूप माना गया है | इसे ‘जाति वेदस्’ भी कहा गया है | कही कही अग्नि और सोम की एकसाथ स्तुति मिलती है |

वरुण

तीसरा स्थान वरुण का है जो जल या समुद्र का देवता माना गया है | इसकी उपाधि असुर (अवेस्ता में अहुर) है | इसका सम्बन्ध अवेस्ता के ‘अहुरमज्दा’ के साथ भी दिखाया जाता है |

वरुण को ‘ऋत’ का रक्षक (ऋतस्य गोपः) कहा गया है | ‘ऋत’ का अर्थ है ‘जगत् की व्यवस्था’ | ऋत को ‘प्राकृतिक नियम’, ‘प्राकृतिक सन्तुलन’ और ‘नैतिक नियम’ भी कहा जाता है | इसी नियम से सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र, दिन-रात आदि सभी संचालित होते है | ऋत समस्त विश्व का आधार है |

वरुण के अंतर्गत ऋत नियम है, वह ही इस नियम का संचालन करता है और देवताओं भी इस नियम के उल्लंघन का अधिकार नही था |

आर्यों का मानना था कि संसार में जो भी घटना होती है वह वरुण की इच्छानुसार ही होती है | यह नैतिक नियमों का संरक्षक और विश्व का अधिपति (शासक) माना गया है |

वरुण से जो आर्य प्रायश्चित्त करते हुए अपने पापों से क्षमा मांगते थे, उनके पापों को वह क्षमा करता था | वह समस्त विश्व का निरीक्षण करता है और पापियों को दण्ड देता है | ऋग्वेद में सूर्य को वरुण के चक्षु और आकाश को उसका वस्त्र बताया गया है |

ए.बी. कीथ के अनुसार ‘इन्द्र ऋग्वेद का सबसे महान देवता है | एकमात्र वरुण ही शक्ति में उसकी बराबरी कर पता है |’

मित्र

ऋग्वेद में वरुण के साथ मित्र देवता का भी उल्लेख मिलता है (मित्रावरुणौ) | ये दोनों संयुक्त रूप से ऋत के रक्षक माने गये है |

मित्र को प्रकाश का देवता कहा गया है | यह वरुण का सखा था तथा दोनों साथ में निवास करते थे | दोनों को एक साथ ‘आदित्य’ कहा गया है | दोनों की वन्दना साथ साथ की गयी है | दोनों संयुक्त रूप से मानव के पापों को क्षमा करने वाले थे |

सूर्य

सूर्य को प्रकाश देने वाला देवता कहा गया है | यह अन्धकार को मिटाता था | ऐसा माना गया है कि सूर्य के पास एक रथ है, जिसे साथ घोड़े खीचते है | सूर्य की उपासना से आर्य रोगों से छुटकारा पाकर दीर्घ जीवन प्राप्त करते थे | ऋग्वेद में इसे आकाश का रत्न कहा गया है | 

सोम

सोम वनस्पतियों का देवता था | ऋग्वेद में इसे अत्यधिक महत्व दिया गया है तथा नवें मण्डल के सभी 118 सूक्त सोम को समर्पित है | सोम को ‘स्फूर्ति का देवता’ (God of inspiration) भी माना जाता था |

सोम एक खास प्रकार का पौधा था जिसकी पत्तियों को पीसकर एक खास मादक द्रव्य निकला जाता था जिसे सोमरस कहा जाता था |

सोमरस इन्द्र आदि देवताओं और ऋषियों को अत्यधिक प्रिय था | इसे पूर्णतः निरोग करने वाला व अमरत्व प्रदान करने वाला माना जाता था |

सोम चन्द्रमा से सम्बन्धित देवता था और इसकी तुलना ईरान के होम देवता और यूनान के दिआनासिस से की जाती है |

मरुत

मरुत आँधी का देवता था | वास्तव में मरुत का एक समूह था जिसके इक्कीस सदस्य थे | इस समूह के सभी सदस्यों को मरुत की संज्ञा दी गयी है | मरुत का प्रमुख कार्य इन्द्र की सहायता करना व वर्षा करना था |

रूद्र

रूद्र को ऋग्वेद में गौण स्थान मिला है | समान्यता इसे तूफान का देवता माना जाता है | वह मरुतो का पिता बताया गया है | इन्द्र की तरह वह भी वज्र धारण करता था |

रूद्र का चरित्र भय उत्पन्न करने वाला है | देवता भी उससे भय खाते थे | रूद्र को कल्याणकारी शिव माना जाता है |

सवितृ

सवितृ (सविता) प्रकाश का देवता था, जिसे प्रसिद्ध गायित्री मन्त्र सम्बोधित और अर्पित किया गया है | यद्यपि ऋग्वेद के कुछ मन्त्रो में सविता को सूर्य से अलग माना गया है तथापि सविता और सूर्य दोनों को एक ही माना जाता है |

गायत्री मन्त्र में सूर्य का सविता के रूप में सम्बोधन किया गया है | सायन के अनुसार सूर्य को उदय से पूर्व सविता कहते है तथा उदय से अस्त तक सूर्य कहते है | 

अश्विन्

अश्विन् नामक दो युग्म देवताओं का नाम मिलता है, जिन्हें ‘नासत्य’ भी कहा जाता था | ये दोनों जुड़वाँ भाई और देवताओं के चिकित्सक थे | ये दोनों स्वस्थ, युवा, सुंदर व कलम के फूलों की माला से युक्त थे | यह एक कल्याणकारी देवता थे | अश्विन को पूषन का पिता और ऊषा का भाई कहा गया है |

अश्विन् दो प्यार करने वालो को मिलाते थे | ये युवतियों के लिए उत्तम वर की तलाश करते थें | इनकी उपासना अधिकतर वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए की जाती थी |

विष्णु

विष्णु का वर्णन ऋग्वेद में गौण देवता के रूप में मिलता है | विष्णु का उदार, संरक्षण देने वाले, युवा, बृहत् शरीर वाले, भक्तो को प्रिय, दान देने वाले, कल्याण करने वाले देवता के रूप में चित्रण किया गया है |

बृहस्पति

बृहस्पति को देवताओं का पुरोहित कहा गया है | यह अपने उपासक आर्यों की आयु और सम्पत्ति में वृद्धि करता था |

पूषन

पूषन नामक देवता पशुओं की रक्षा करने वाला देवता माना जाता था | पूषन शब्द पुष् धातु से बना है जिसका अर्थ है पोषक | इसे ‘चारागाह का देवता’ माना जाता है | यह आर्यों के पशुओं का संरक्षक था | यह पशुओं के गिरने, चोट लगने व खो जाने से बचाता था | पूषन के रथ बकरे खींचते थें | यह सूर्य के सम्बद्ध देवता था |

यम

यम मृत्यु का देवता था, जिसे यमलोक के राजा की उपाधि मिली हुई है | यह मृत व्यक्तियों का यमलोक में स्वागत करता था | इसका स्वरुप भयावह है |

देवियाँ

कुछ देवियों के भी नाम मिलते है, किन्तु पितृसत्तात्मक समाज के कारण इस काल में देवियों का महत्व देवताओं से कम था |

अरण्यानी जंगल की देवी थी | उषा, पृथिवी, सरस्वती, अदिति देवियों का भी उल्लेख मिलता है | उषा ‘प्रभात की देवी’ और ‘सूर्य की प्रियतमा’ मानी जाती थी | सूर्योदय के पूर्व आकाश में दिखाई देने वाली लालिमा उषा का प्रतिनिधित्व करती है | उषा को रात्रि की बहन भी माना गया था |

पृथिवी को ऋग्वेद में माता की संज्ञा दी गयी है | पृथिवी पर्वत, जंगल, वृक्ष आदि का भार वहन करती है | सरस्वती नदी को ‘नदियों की माता’ कहा गया है | सिन्धु नदी को भी देवी का दर्जा दिया गया है |

ऋग्वेद काल का धार्मिक जीवन (Religious Life of Rigveda Period) के महत्वपूर्ण तथ्य

  1. ऋग्वैदिक आर्य मूर्ति पूजा नही करते थे | वें ईश्वर की उपासना किसी मन्दिर में नही करते थें |
  2. वे सामान्यतः प्राकृतिक शक्तियों की ही उपासना अलग-अलग देवताओं के स्वरूप में किया करते थे |
  3. वे देवताओं की उत्पत्ति को मानते थे परन्तु अमर मानते थे |
  4. सामान्यतः आर्यों के हर कबीले या गोत्र का अपना अलग देवता होता था | वह उनके कबीले व उनकी रक्षा करता था |
  5. वे अपने देवता से सुख-समृद्धि एवं भौतिक-लाभ की कामना करते थें |
  6. वे देवता की उपासना मुख्य रूप स्तुति पाठ और यज्ञ द्वारा करते थे | स्तुतिपाठ सामूहिक या व्यक्तिगत होता था | यज्ञ में बलि भी दी जाती थी |
  7. वैदिककालीन 33 देवताओं को स्थान के अनुसार तीन श्रेणियों में बाँटा गया था | पृथ्वी के देवता, अन्तरिक्ष के देवता एवं आकाश के देवता |
  8. समस्त देवताओं में इन्द्र, अग्नि एवं वरुण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण थें |
  9. सर्वाधिक प्रतापी देवता इन्द्र था | इंद्र ने वृत्र राक्षस की हत्या करके जल को मुक्त कराया था इसलिए इसे पुर्मिद कहा गया है |
  10. अग्नि देवताओं व आर्यों के बीच मध्यस्थ या संदेशवाहक का दायित्व निभाता था |
  11. वरुण की उपाधि असुर है, जो ऋत का रक्षक (ऋतस्य गोपः) था | वरुण का सम्बन्ध अवेस्ता के अहुरमज्दा के साथ भी दिखाया जाता है |
  12. मित्र और वरुण दोनों साथ में निवास करते थे | इन दोनों को एक साथ आदित्य कहा गया है |
  13. सूर्य, जिसे ऋग्वेद में आकाश का रत्न कहा गया है, की उपासना करके आर्य रोगों से छुटकारा पाकर लम्बी आयु प्राप्त करते थे | 
  14. सोम, जो वनस्पतियों का देवता था | ऋग्वेद के नवें मण्डल के सभी 118 सूक्त इसे समर्पित किये गये है |
  15. मरुत, जो आँधी का देवता था, एक समूह था | इसके इक्कीस सदस्य थे | मरुतों की माता की परिकल्पना चितकबरी गाय के रूप में की गयी है |
  16. रूद्र को कल्याणकारी शिव माना जाता है |
  17. सवितृ (सविता), जो प्रकाश का देवता था | इसे गायित्री मन्त्र सम्बोधित एवं अर्पित किया गया है |
  18. अश्विन् (नासत्य) दो युग्म देवता थें | ये दोनों जुड़वाँ भाई तथा देवताओं के चिकित्सक थे |
  19. विष्णु, जो कल्याण करने वाले देवता थें, का वर्णन ऋग्वेद में गौण देवता के रूप में किया गया है |
  20. बृहस्पति देवताओं के पुरोहित थे |
  21. पूषन चारागाह का देवता था | यह पशुओं की रक्षा करता था |
  22. यम, जो मृत्यु का देवता था, मृत व्यक्तियों का यमलोक में स्वागत करता था |
  23. पितृसत्तात्मक समाज के कारण ऋग्वैदिक काल में देवियों का महत्व देवताओं से कम था |