भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रति गाँधी जी और लोकमान्य तिलक के दृष्टिकोण में समानता और असमानताएं (Similarities and differences in the approach of Gandhi and Tilak towards Indian Independence Movement) :महात्मा गाँधी और बाल गंगाधर तिलक (लोकमान्य तिलक) दोनों ही महत्वपूर्ण और लोकप्रिय जननेता थें | इन दोनों ही नेताओं ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को स्वतंत्रता दिलाने में अतिमहत्वपूर्ण योगदान दिया था | स्वतंत्रता आन्दोलन में तिलक और गाँधी के दृष्टिकोण में हमें पर्याप्त समानताओं के साथ इनके तरीकों व विचारधाराओं में अनेक भिन्नताएँ भी दिखती है |
समानताएं
1. महात्मा गाँधी और बाल गंगाधर तिलक दोनों ही स्वशासन के महत्व से भलीभांति परिचित थे और भारत को ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्त कराने लगातार सक्रिय रहें |
2. महात्मा गाँधी और तिलक दोनों ने ही अंग्रेजी सरकार के खिलाफ विरोध के साधन के रूप में असहयोग व सविनय अवज्ञा का सहारा लिया |
3. गाँधीजी और लोकमान्य तिलक दोनों ही जननेता स्वशासन प्राप्ति के लिए लोगों की भागीदारी बढ़ाने में विश्वास रखते थें | दोनों ही नेताओं ने स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु जन-आंदोलनों का सहारा लिया |
4. बाल गंगाधर तिलक और गाँधीजी दोनों ही भारतीय संस्कृति व विरासत से लगाव रहते थे और इसे बढ़ावा देने व संरक्षित करने में जोर देते थे |
असमानताएं
1. लोकमान्य तिलक और गाँधीजी द्वारा भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किये जाने वाले प्रयासों में पर्याप्त असमानताएं देखने को मिलती है | जहाँ लोकमान्य तिलक, जिन्हें ‘भारतीय असंतोष का वास्तविक जनक’ कहा जाता था, भारत की स्वतंत्रता हेतु यथासंभव हिंसक साधनों के प्रयोग में अविश्वास नही रखते थे और स्वशासन हेतु बल प्रयोग को अनुचित नही मानते थे वही गाँधी जी का इस हेतु दृष्टिकोण पूर्णतया भिन्न था, उनका नजरिया अहिंसावादी था और वे स्वतंत्रता-प्राप्ति हेतु हिंसा को उचित नही मानते थे |
2. स्वतंत्रता आन्दोलन के सन्दर्भ में बाल गंगाधर तिलक का दृष्टिकोण राजनीतिक सुधार पर अधिक केंद्रित था, इसके विपरीत महात्मा गाँधी का दृष्टिकोण अधिक व्यापक था, जिसमे राजनीतिक सुधार के साथ-साथ सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सुधार भी शामिल थे |
3. लोकमान्य तिलक कट्टर राष्ट्रवादी नेता थें, जिन्होंने लोगों में राष्ट्रवाद की भावना जगाने के लिए गणपति और शिवाजी महोत्सव की शुरुआत और गोहत्या के विरुद्ध सभाओं की स्थापना की थी | वे हिन्दू धर्म व संस्कृति की प्राधनता में विश्वास करते थे | इसके विपरीत गाँधीजी ‘सर्वधर्म-समभाव’ की भावना में विश्वास करते थे | उनके विचार समग्र राष्ट्रवाद से प्रेरित थे, जो भारत के सभी समुदायों के कल्याण में विश्वास रखते थे |
4. जहाँ लोकमान्य तिलक शिक्षा के महत्व में विश्वास करते थे, वही गाँधीजी शिक्षा के साथ-साथ कताई व बुनाई जैसे व्यवहारिक कौशल की आवश्यकता पर भी जोर देते थे |
इस प्रकार निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते है कि तिलक और गाँधीजी दोनों सबसे प्रमुख लक्ष्य भारत को स्वतंत्रता दिलाना था, लेकिन इसकी प्राप्ति हेतु दोनों के दृष्टिकोण भिन्न थे | जहाँ लोकमान्य तिलक उग्रवादी राष्ट्रवाद के पक्षधर थे, वास्तव में तिलक ने ही भारतीय उग्रवाद की मशाल के जलाई थी | वही महात्मा गाँधी ने अपने लक्ष्य की प्राप्ति में अहिंसक प्रतिरोध को प्राथमिकता दी | अंततः हम कह सकते है कि स्वतंत्रता आन्दोलन में भले ही गाँधीजी और तिलक के दृष्टिकोणों में हमे कुछ अंतर दिखाई देते है पर वास्तव में दोनों ही नेताओं का मुख्य उद्देश्य भारत को अंग्रेजी शासन से मुक्ति दिलाना था और दोनों ही अपने-अपने दृष्टिकोण से इस उद्देश्य की प्राप्ति में लगे रहे |