भक्ति आन्दोलन का भारतीय समाज और संस्कृति पर प्रभाव

Impact of Bhakti movement on Indian society and culture

भक्ति आन्दोलन का भारतीय समाज और संस्कृति पर प्रभाव (Impact of Bhakti movement on Indian society and culture) : भक्ति आन्दोलन एक धार्मिक व सामाजिक सुधार आन्दोलन था, जिसका इतिहास का अत्यंत प्राचीन है | उपनिषदों में इसकी दार्शनिक अवधारणा का पूर्ण प्रतिपादन मिलता है | परवर्ती काल में भगवद्गीता ने ईश्वर मार्ग पर चलने हेतु प्रेम व भक्ति को सर्वोत्तम माना | छठी शताब्दी ई. भागवत पुराण में भक्ति की अवधारणा को सबसे अधिक महत्व दिया गया | दक्षिण भारत में शंकराचार्य ने वेदांत या अद्वैत की विचारधारा का पुनः प्रवर्तन करके भक्ति की अवधारणा को सुदृढ़ प्रतिष्ठापित किया |

भक्ति आन्दोलन का आरम्भ दक्षिण भारत में शैव नयनारों व वैष्णव आलवारों द्वारा की गई थी, इसके बाद इसका सभी क्षेत्रों में विस्तार हुआ था |

भक्ति आन्दोलन के मुख्य रूप से दो उद्देश्य थे | इसका पहला और सबसे मुख्य उद्देश्य हिन्दू धर्म में व्याप्त बुराइयों को दूर करके इसमे सुधार लाना था, जिससे हिन्दू धर्म व संस्कृति इस्लामी प्रचार तथा धर्म-परिवर्तन के आघात को रोकने में सक्षम हो सके |

यह आन्दोलन हिन्दू धर्म में परम्परागत जटिल कर्मकाण्ड के स्थान पर सरल पूजा पद्यति बनाने और जातीय नियमों को उदार बनाने के उद्देश्य में सफल रहा |

इस आन्दोलन का दूसरा उद्देश्य हिन्दूधर्म और इस्लाम के मध्य समन्वय स्थापित करना था, जिससे हिन्दू व मुस्लिम समुदायों में मैत्री संबंध बन सके |

भक्ति आन्दोलन की प्रमुख विशेषताएं

1. भक्ति आन्दोलन मुख्य रूप से एकेश्वरवादी पंथ था, जिसमे भक्त एक ही ईश्वर की उपासना करते थे | ईश्वर या तो सगुण रूप में हो सकता था या निर्गुण रूप में | सगुणोपासक वैष्णव के रूप में जाने जाते थे, जो राममार्गी व कृष्णमार्गी दो शाखाओं में विभाजित थे | इनके आराध्य क्रमशः राम और कृष्ण थे और ये दोनों ही विष्णु के अवतार थे |

2. भक्ति की धारणा का अर्थ एकेश्वर के प्रति पूर्ण निष्ठा है | भक्त की उपासना का उद्देश्य मुक्ति हेतु ईश्वर की आराधना करना है |

3. भक्ति आन्दोलन का उद्देश्य हिन्दू धर्म में सुधार करना था | इसने धर्म में पुरोहित वर्ग के प्रभुत्व व कर्मकाण्डों को चुनौती दी | इस आन्दोलन के संतों के अनुसार ईश्वर-भक्ति में यज्ञों एवं दैनिक कर्मकाण्डों के लिए कोई स्थान नही है |

4. भक्ति आन्दोलन ने भाषा के विकास में भी योगदान दिया | इस आन्दोलन के संतों ने अपने उपदेश जनसाधारण की सामान्य भाषा में दिए, जिसने आधुनिक भारतीय भाषाओँ जैसे हिंदी, मराठी, बंगाली व गुजराती भाषाओँ के विकास में अत्यंत योगदान दिया |

5. भक्ति आन्दोलन एक समतावादी आन्दोलन था | इसने जाति या धर्म पर आधारित भेदभाव को पूर्ण रूप से नकारा था | भक्ति आन्दोलन के संतों ने भक्ति के द्वार निम्न वर्णों और अछूतों हेतु खोल रखे थे | इस आन्दोलन के अनेकों संत निम्न वर्ण के थे |

भक्ति आन्दोलन का भारतीय समाज और संस्कृति पर प्रभाव

भक्ति आन्दोलन एक व्यापक आन्दोलन था, जिसने भारत के सम्पूर्ण महाद्वीप को कई शताब्दियों तक प्रभावित किया | भक्ति आन्दोलन का भारतीय समाज और संस्कृति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था |

भक्ति आंदोलन हिन्दू समाज में व्याप्त वर्ण-व्यवस्था को स्वीकार नही करता था | यह सभी मानवों को एक-समान मानता था | इस आन्दोलन के बहुत से संत निम्न वर्ण के थे | इसने जातिप्रथा चुनौती दी तथा सामाजिक समानता को बढ़़ावा दिया |

इसने धर्म में पुरोहित वर्ग के वर्चस्व को चुनौती दी और ईश्वर व भक्त के बीच मध्यस्थ की आवश्यकता को नकारा |

इसने हिन्दू धर्म के पारंपरिक कर्मकाण्ड प्रथाओं का विरोध किया और इससे इतर ईश्वर की भक्ति के महत्व पर बल दिया गया था |

इस आन्दोलन के संतों ने अपने संदेशों को संप्रेषित करने हेतु स्थानीय भाषाओँ का उपयोग किया, जिसने क्षेत्रीय भाषाओं के प्रसार में योगदान दिया |

भक्ति आंदोलन ने ईश्वर उपासना के लिए किसी भी बंधन को स्वीकार नही किया | इसने जाति, धर्म व  लिंग की सीमाओं को तोड़ते हुए लोगों में समतावादी भावना को बढ़ावा दिया |

भक्ति आन्दोलन का प्रभाव राजनीति पर भी पड़ा | इस आन्दोलन के संतों ने शासक वर्ग के अन्यायपूर्ण कार्यों की आलोचना की, जिससे जनमानस के मन में इनके प्रति प्रतिरोध की भावना विकसित हुई |

भक्ति आन्दोलन से स्थानीय कला व शिल्प को संरक्षण मिला | इसने क्षेत्रीय कला एवं हस्तशिल्प को बढ़ावा देने में योगदान दिया |

इस आंदोलन ने हिंदू धर्म के तहत नए सम्प्रदायों व उपसम्प्रदायों को जन्म दिया, जिससे एक विविध तथा बहुलवादी धार्मिक संस्कृति का विकास हुआ था |

भक्ति आन्दोलन में ज्ञान की प्राप्ति हेतु शिक्षक या गुरु को आवश्यक माना गया था | इसने गुरु से वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने पर अत्यधिक बल दिया था | अतः इस आन्दोलन ने गुरु के विचार व गुरु-शिष्य परंपरा के पुनरुद्धार में योगदान दिया |

भक्ति संतों ने क्षेत्रीय धार्मिक प्रथाओं व अनुष्ठानों के विकास में योगदान दिया था |

ये भी देखें : भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रति गाँधी और तिलक के दृष्टिकोण में समानता और असमानताएं