बहरामशाह का पतन

Bahramshah ka patan

बहरामशाह का पतन (Fall of Bahramshah) : विद्यादूत के पिछले लेख में हमने बहरामशाह का इतिहास टॉपिक पर चर्चा की थी | इस लेख में हम बहराम शाह के पतन पर प्रकाश डालेंगे | तुर्क सरदार, जो एतगीन की हत्या के कारण पहले से ही सुल्तान से भयभीत थे, बदरुद्दीन संकर की हत्या के बाद अब उनका सुल्तान पर से अपनी सुरक्षा के प्रति विश्वास उठ गया | उलेमा वर्ग भी सुल्तान से नाराज था, क्योकि बदरुद्दीन की हत्या के साथ उनके एक साथी, जो षड्यंत्र में शामिल था, की भी हत्या कर दी गयी थी | वजीर महजुबुद्दीन भी सुल्तान द्वारा अपने ऊपर करवाए गये हमले से कुपित था |

इस प्रकार एक सर्वव्यापी षड्यंत्र शुरू हो गया | इसी समय 1241 में मंगोलों ने लाहौर पर घेरा डाला | सुल्तान ने लाहौर की रक्षा हेतु वजीर महजुबूद्दीन के नेतृत्व में सेना भेजी, किन्तु जब सेना लाहौर के निकट पहुंची तब महाजुबुद्दीन ने अपने षड्यंत्र से प्राप्त सुल्तान का एक पत्र सरदारों अकुर अमीरों को दिखा दिया, जिसमे लिखा था कि उन्हें गिरफ्तार करके मार दिया जाये |61

वजीर अपने कुचक्र में सफल रहा | सभी सुल्तान से क्रोधित हो गये तथा सेना में विद्रोह फ़ैल गया | बहरामशाह को सिंहासनच्युत करने के लिए सभी विद्रोही दिल्ली की ओर वापस रवाना हो गये | इधर सुल्तान को जब विद्रोह की सुचना मिली तो उसने तुरंत शेखुल इस्लाम सईद कुतुबुद्दीन को विद्रोह शांत करने हेतु भेजा |

मिन्हाज लिखता है – “आदेशानुसार वह (कुतुबुद्दीन) सेना के पास पहुंचा | परन्तु उसने विद्रोह को और भड़काने का प्रयास किया | फिर वह वापस आया और उसके पीछे-पीछे ही सेना आई | राजधानी की प्राचीर के नीचे ही लड़ाई शरू हो गयी | लेखक मिनहाज ने और नगर के कुछ प्रमुख नागरिकों ने विद्रोह को शांत करने और शांति स्थापित करने का प्रयास किया, परन्तु सफलता नही मिली |”62

विद्रोही सेना और दिल्ली के नागरिकों के बीच संघर्ष लगभग तीन महीने तक चलता रहा | वजीर ने यहाँ भी कपट का प्रयोग किया तथा दिल्ली की जनता में फूट डालने के लिए कुछ धार्मिक नेताओं को धन देकर अपने पक्ष में मिला लिया | फलस्वरूप नगर के अंदर भी सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह शुरू हो गया |

इस प्रकार दिल्ली पर विद्रोहियों का अधिकार हो गया | बहरामशाह कैद कर लिया गया और उसकी हत्या कर दी गयी (मई, 1242) | इस प्रकार अव्यवस्था की स्थिति में बहरामशाह का अल्पकालीन दो वर्षीय शासनकाल का अंत हो गया | बहरामशाह के पतन से एक बार फिर शासन की बागडोर तुर्क सरदारों के हाथों में आ गयी |

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