Shiksha Ke Ang : शिक्षा के अंग, शिक्षा के घटक

Shiksha Ke Ang

शिक्षा के अंग (Shiksha Ke Ang) या शिक्षा के घटक (Data and Factors of Education) : विद्यादूत (vidyadoot) में आज हम शिक्षा के अंग (shiksha ke ang) या शिक्षा के घटक (shiksha ke ghatak) पर चर्चा करेंगें | इसके पूर्व विद्यादूत में शिक्षा से सम्बन्धित कुछ लेख प्रस्तुत किये जा चुके है, जो इस प्रकार है – शिक्षा का अर्थ और शिक्षा की परिभाषाएं, शिक्षा एक प्रक्रिया के रूप में, शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षा का संकुचित और व्यापक अर्थ, शिक्षा के प्रकार, औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा में अंतर | शिक्षा क्या है ? शिक्षा व्यक्ति की आंतरिक शक्तियों का विकास करने की एक प्रक्रिया है | यह एक जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है | शिक्षा के अंग (Shiksha Ke Ang) से क्या तात्पर्य है ? शिक्षा के अंग का अर्थ उन वस्तुओं से है, जिनकी मदद से शिक्षा की प्रक्रिया सम्पन्न होती है | विद्वानों के अनुसार शिक्षा के कई अंग या घटक (Shiksha Ke Ang) होते है |

प्रारम्भ में शिक्षा के दो ही अंग माने जाते थे जैसाकि जॉन एडम्स ने माना था पहला शिक्षक और दूसरा शिक्षार्थी | उसके बाद जॉन डीवी और रायबर्न जैसे विद्वानों ने इसके तीन अंगो का वर्णन किया | पहला शिक्षक, दूसरा शिक्षार्थी और तीसरा पाठ्यचर्या |

अमरीकी शिक्षाविद् हेंडरसन (Handerson) ने भी शिक्षा के तीन अंग माने है | पहला प्रशिक्षण (Training) दूसरा निर्देशन (Instruction) और तीसरा प्रेरणा (Inspiration) | लेकिन वर्तमान में शिक्षा ने अपना रूप अत्यधिक व्यापक बना लिया है | अब इसकी व्यापकता के देखने हुए विद्वान इसके कई अंग या घटक मानते है |

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शिक्षा के अंग (Shiksha Ke Ang) या शिक्षा के घटक

शिक्षा के मुख्य अंग (Shiksha Ke Ang) शिक्षा के घटक (Shiksha Ke Ghatak) निम्नलिखित है –

  1. शिक्षार्थी (Educand/Student)
  2. शिक्षक (Educator/Teacher)
  3. पाठ्यचर्या (Curriculum)
  4. शिक्षण तकनीकी (Technique of Teaching)
  5. मापन व मूल्यांकन (Measurement and Evaluation)
  6. शिक्षार्थी का पर्यावरण (Environment of Educand)

(1) शिक्षार्थी (Educand/Student)

शिक्षा के अंग (Shiksha Ke Ang) : शिक्षार्थी से तात्पर्य होता है सीखने वाला | आधुनिक काल में शिक्षा का पहला और सबसे महत्वपूर्ण अंग शिक्षार्थी होता है | अगर शिक्षार्थी का अस्तित्व नही हो तो न ही शिक्षक का अस्तित्व होगा और न ही शिक्षा के किसी अन्य अंगों का |

सम्पूर्ण शिक्षा पद्यति शिक्षार्थी को केंद्र में रखकर ही तैयार की जाती है | शिक्षा की योजना शिक्षार्थी की रूचि, रुझान और योग्यता को ध्यान रखकर ही तैयार की जाती है | जो शिक्षा शिक्षार्थी के लाभ की नही होती है उसे महत्व नही दिया जा सकता है |

शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षक केवल शिक्षार्थी का मार्गदर्शक होता है अर्थात् वह केवल उसे (शिक्षार्थी) मार्ग दिखाता है और उस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है | एडम्स लिखते है कि “जॉन को लैटिन पढ़ाने के लिए शिक्षक को लैटिन की भांति जॉन का भी भली-भांति ज्ञान होना चाहिए |” अर्थात एडम्स मानते है कि एक शिक्षक को विषय-विशेषज्ञ होने के साथ-साथ अपने शिक्षार्थी के विषय में भी भली-भांति जानकारी होनी चाहिए |        

(2) शिक्षक (Educator/Teacher)

शिक्षा के अंग (Shiksha Ke Ang) : शिक्षक वह होता है जो किसी व्यक्ति का मार्गदर्शन करता है | संकुचित अर्थ में शिक्षार्थी को पढ़ाने वाला शिक्षक कहलाता है | प्राचीन और मध्यकालीन शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्गत शिक्षक को शिक्षा का प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण अंग माना जाता था |

यद्यपि शिक्षक के अभाव में शिक्षा की प्रक्रिया रूक नही सकती तथापि शिक्षक की सहायता के बिना शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति करना सम्भव नही है | वास्तव में शिक्षक का पद अत्यंत महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण होता है क्योकि वह ही शिक्षार्थी को सही और गलत का ज्ञान कराता है |

शिक्षार्थी की असफलता शिक्षक की असफलता मानी जाती है | शिक्षार्थी को उसकी छिपी हुई आन्तरिक शक्तियों का ज्ञान कराने का कार्य शिक्षक ही करता है | एक शिक्षक में अपने विषय की विशेषज्ञता के साथ साथ बहुमुखी व्यक्तित्व भी होना चाहिए |

उसमे शिक्षार्थी की मनोदशा को समझने की क्षमता भी होनी अवश्य होनी चाहिए | एडम्स लिखते है कि “जॉन को लैटिन पढ़ाने के लिए शिक्षक को लैटिन की भांति जॉन का भी भली-भांति ज्ञान होना चाहिए |” अर्थात एडम्स मानते है कि एक शिक्षक को विषय-विशेषज्ञ होने के साथ-साथ अपने शिक्षार्थी के विषय में भी भली-भांति जानकारी होनी चाहिए |       

(3) पाठ्यचर्या (Curriculum)

शिक्षा के अंग (Shiksha Ke Ang) : शिक्षा का तीसरा महत्वपूर्ण अंग पाठ्यचर्या होता है | यह शिक्षा व्यवस्था का एक अनिवार्य और महत्वपूर्ण अंग माना जाता है | पाठ्यचर्या शिक्षा संस्था की शिक्षा व्यवस्था का केंद्र-बिंदु होता है |

शिक्षा की प्रक्रिया पाठ्यचर्या के माध्यम से सुचारू रूप से कार्य करती है | इसके द्वारा विद्यालयी शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति होती है |

पाठ्यचर्या शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच की कड़ी है, जो दोनों को आपस में जोड़ती है | शिक्षक पाठ्यचर्या के माध्यम से शिक्षार्थी के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयास करता है | पाठ्यचर्या से शिक्षकों को दिशा-निर्देशों की प्राप्ति होती है | वास्तव में पाठ्यचर्या शिक्षक के बाद शिक्षार्थी के लिए दूसरा पथ-प्रदर्शक होता है |

पाठ्यचर्या दो शब्दों से मिलकर बना है – पाठ्य और चर्या | यहाँ पाठ्य का अर्थ है ‘पढ़ने योग्य’ या ‘पढ़ाने योग्य’ और चर्या का अर्थ है ‘नियमपूर्वक अनुसरण’ |

इसप्रकार पाठ्यचर्या का अर्थ हुआ ‘पढ़ने या पढ़ाने योग्य’ (सीखने या सिखाने योग्य) क्रियाओं या विषयवस्तु का नियमपूर्वक अनुसरण | पाठ्यचर्या को अंग्रेजी भाषा में करिकुलम (Curriculum) कहा जाता है |

करिकुलम शब्द लैटिन भाषा के कर्रेर (Currere) शब्द से बना है  जिसका अर्थ होता है ‘दौड़ का मैदान’ | अर्थात् शिक्षा की तुलना दौड़ से की गयी है, जिसमे पाठ्यचर्या को दौड़ के मैदान के समान माना गया है, जिसे शिक्षार्थी को अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पार करना पड़ता है |

राबर्ट युलिच मानते है कि “पाठ्यचर्या दौड़ का मैदान है, जिसपर व्यक्ति लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दौड़ता है |” [“It is a runway, a course which one runs to reach a goal. – Robert Ulich.]

संकुचित अर्थ में पाठ्यचर्या के लिए सिलेबस (Syllabus) शब्द का भी प्रयोग किया जाता है, जिसका तात्पर्य होता है ‘कोर्स ऑफ़ स्टडी’ अथवा ‘कोर्स ऑफ़ टीचिंग’ | पाठ्यक्रम दो शब्दों से मिलकर बना है – पाठ्य+क्रम अर्थात् किसी अध्ययन की विषय-वस्तु जो क्रम में व्यवस्थित हो |

किसी भी शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति उसके पाठ्यचर्या पर ही निर्भर करती है | पाठ्यचर्या जितनी सुनियोजित व व्यवस्थित होगी शिक्षा के उद्देश्य उतनी ही सरलता से प्राप्त होंगे | शिक्षाशास्त्री टी.एच. ब्रिग्स के अनुसार, “शिक्षा में मुख्य समस्या पाठ्यचर्या ही है |” [“the fundamental problem in education is the curriculum.” – T.H. Breggs.]

संकुचित अर्थ में पूर्व-निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए शिक्षार्थी को व्यवस्थित रूप में एक निश्चित अवधि में जो विषय पढ़ाये जाते है व जो विभिन्न क्रियाएँ कराई जाती है, उसे समान्यतः पाठ्यचर्या कहा जाता है |

लेकिन व्यापक और वास्तविक अर्थ में एक शिक्षार्थी को ज्ञान प्राप्ति में जिन विषयों, विभिन्न क्रियायों और सामाजिक वातावरण से योगदान मिलता है, उन्हें सम्मिलित रूप में पाठ्यचर्या कहा जाता है |

पाठ्यचर्या अतिआवश्यक है यह शिक्षक को बताती है कि क्या पढ़ाना है साथ ही शिक्षार्थी को भी इस बात से अवगत कराती है कि उसे क्या पढ़ना है या पढ़ाया जाना है | पाठ्यचर्या के अभाव में शिक्षा अव्यवस्थित और उद्देश्यविहीन हो जाएगी |

(4) शिक्षण तकनीकी (Technique of Teaching)

शिक्षा के अंग (Shiksha Ke Ang) : वर्तमान समय में शिक्षा का स्वरुप अतिव्यापक हो गया है | इसके उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अनेक विभिन्न शिक्षण तकनीकी का उपयोग किया जा रहा है |

नवीन शिक्षण सिद्धांत, शिक्षण विधि, सहायक सामग्री आदि को महत्व दिया जा रहा है | शिक्षण तकनीकी शिक्षा को पूर्णता प्रदान करती है, जिससे कम समय और कम शक्ति से अधिकाधिक उपलब्धियों को प्राप्त किया जा सकता है |

आधुनिक शिक्षा में शिक्षण तकनीक की उपयोगिता को अत्यधिक महत्व देने के कारण यह शिक्षा का अभिन्न अंग बन गयी है |

(5) मापन व मूल्यांकन (Measurement and Evaluation)

शिक्षा के अंग (Shiksha Ke Ang) : मापन से ज्ञात होता है कि कोई वस्तु कितनी है और मूल्यांकन से ज्ञात होता है कि कोई वस्तु कितनी अच्छी है | इसप्रकार मापन के अंतर्गत बुद्दि परीक्षण, व्यक्तित्व परीक्षण आदि आते है जबकि मूल्यांकन के अंतर्गत मानव व्यवहार में हुए परिवर्तन की जानकारी प्राप्त की जाती है |

मापन व मूल्यांकन के आधार पर पाठ्यचर्या, शिक्षण सिद्धांत, शिक्षण विधियों, सहायक सामग्री आदि में आवश्यक सुधार किया जा सकता है | साथ ही मापन और मूल्यांकन से शिक्षार्थी की शैक्षिक उपलब्धियों का पता लगाया जा सकता है और उनमे सुधार किया जा सकता है |

इसीकारण से मापन और मूल्यांकन को शिक्षा का अंग माना गया है |

(6) शिक्षार्थी का पर्यावरण (Environment of Educand)

शिक्षा के अंग (Shiksha Ke Ang) : शिक्षा के उच्चतम लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए शिक्षार्थी के पर्यावरण को भी महत्व दिया जाना अतिआवश्यक है | शिक्षार्थी के पर्यावरण के अंतर्गत हम उस पर पड़ने वाले प्रकृति, परिवार, पड़ोस, विद्यालय, समुदाय, समाज आदि के प्रभाव को लेते है |

यह शोधों द्वारा सिद्ध हो चुका है कि शिक्षार्थी का पर्यावरण जितना अच्छा व उसके अनुकूल होगा उतनी ही जल्दी व अच्छी तरह से वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर लेगा | इसलिए शिक्षार्थी का पर्यावरण भी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है |

शिक्षा के अंग (Shiksha Ke Ang) : अमरीकी शिक्षाविद् हैण्डरसन (Handerson) ने शिक्षा के निम्नलिखित तीन अंग बताये है –

  1. प्रशिक्षण (Training)
  2. निर्देशन (Instruction)
  3. प्रेरणा (Inspiration)

प्रशिक्षण (Training)

प्रशिक्षण का उद्देश्य आदतों का निर्माण करना है | प्रशिक्षण का कार्य बालकों में अच्छी आदतों को जन्म देना है | बालक को अच्छी आदतें डालने में जितनी ज्यादा मदद की जाति है, उतने ही ज्यादा अच्छे तरीकें से वें जीवन हेतु तैयार होते हैं |

निर्देशन (Instruction)

निर्देशन बालक को ज्ञान प्राप्ति और बुद्धि के विकास करने में मदद करता है | शिक्षक के निर्देशन द्वारा बालक विभिन्न प्रकार के ज्ञान प्राप्त करता है | निर्देशन के कारण ही बालक को अच्छे और बुरे कार्यों में अंतर पता चलने लगता है |

प्रेरणा (Inspiration)

बालको में प्रशिक्षित के द्वारा अच्छी आदतों का जन्म होता है और निर्देशन के द्वारा उनकी बुद्धि का विकास होता है | लेकिन अच्छी आदतों और ज्ञान के अलावा अच्छे कार्यों को करने हेतु उनमें प्रेरणा का होना जरूरी है | इसलिए प्रेरणा शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण और आवश्यक अंग है |

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