पृथ्वी की उत्पत्ति और विकास की पूरी कहानी

ORIGIN AND EVOLUTION OF EARTH

पृथ्वी की उत्पत्ति और विकास की पूरी कहानी : सौर परिवार के अनेक सदस्यों में से एक हमारी पृथ्वी सबसे अनोखा ग्रह है क्योकि एकमात्र इसी पर जीवन मौजूद है | जहाँ तक पृथ्वी की उत्पत्ति का प्रश्न है कोई भी निश्चित रूप से यह नही कह सकता कि पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई है | सबसे मान्य परिकल्पना के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति एक तारे के निर्माण के फलस्वरूप हुई है | सूर्य से उचित दूरी पर स्थित होने और उचित द्रव्यमान के परिणामस्वरूप हमारी पृथ्वी सौर-मंडल का एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसमे जीवन की उत्पत्ति व विकास हुआ | विद्यादूत के इस लेख में हम पृथ्वी की उत्पत्ति और विकास पर चर्चा करेंगें |

आपको मालूम होना चाहिए कि पृथ्वी सौर परिवार का पांचवा सबसे विशाल ग्रह है | हमारा पृथ्वी ग्रह शुक्र और मंगल ग्रहों के बीच में स्थित है तथा सूर्य से दूरस्थ तीसरा ग्रह है | पृथ्वी के सबसे करीबी ग्रह शुक्र है |

पृथ्वी और शुक्र ग्रहों का आकार लगभग बराबर है इसलिए पृथ्वी और शुक्र को जुड़वाँ ग्रह भी कहा जाता है | इसके करीबी ग्रहों में शुक्र (Venus) के बाद क्रमशः मंगल (Mars), बुध (Mercury), बृहस्पति (Jupiter) व शनि (Saturn) का स्थान आता है | सभी ग्रहों में सबसे ज्यादा औसत घनत्व हमारी पृथ्वी का ही है |

अगर हम पृथ्वी को अंतरिक्ष से देखें तो यह नीले रंग के एक चमकीले गोले की तरह दिखाई देती है | पृथ्वी को नीला ग्रह भी कहा जाता है | पृथ्वी के सबसे करीबी तारा सूर्य है |

सूर्य के प्रकाश को हमारी पृथ्वी तक पहुचने में लगभग 8 मिनट का समय लगता है | सूर्य के बाद पृथ्वी के सबसे करीब का तारा प्रोक्सिमा सेंचुरी है |

अब हम पृथ्वी की उत्पत्ति और विकास की पूरी कहानी को जानेंगें |

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पृथ्वी की उत्पत्ति : पृथ्वी की उत्पत्ति और विकास

पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई ? विद्वानों के अनुसार लगभग 4 अरब 60 करोड़ वर्ष पहले अंतरिक्ष में विभिन्न गैसों और धूल का एक अतिविशाल बादल (नेबुला) भंवरदार गति के साथ घूम रहा था | समय के साथ साथ यह विशालकाय बादल स्वयं के गुरुत्व के प्रभाव से धीरे-धीरे सिकुड़ने लगा |

धीरे-धीरे जैसे-जैसे यह विशालकाय गैसों व धूल का बादल (नेबुला) सिकुड़ता गया वैसे-वैसे इसकी आकृति चपटी डिस्क की भांति बनती गयी | ज्यों ज्यों नेबुला सिकुड़कर छोटा होने लगा वैसे-वैसे इसकी घूर्णन गति बढ़ती गयी |

नेबुला के घूर्णन की तीव्रतर गति के कारण इसके बहुत से छोटे-छोटे खंड बन गए | इसके साथ ही नेबुला का केन्द्रीय भाग बहुत धीरे-धीरे घूमता रहा और अंत में यह नये तारे सूर्य के रूप में परिवर्तित हो गया |

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इस तारे का केन्द्रीय भाग अत्यधिक गर्म था जोकि तापनाभकीय अभिक्रिया को शुरू करने के लिए पर्याप्त था | नेबुला (गैसों व धूल का बादल) के कोणीय संवेग का अधिकतर भाग छोटे खंडों में शेष रह गया था | (कोणीय संवेग वस्तु के आकार और उसकी घूर्णन की गति पर निर्भर करता है |) इन बचे हुए छोटे खंडों से विभिन्न ग्रहों का निर्माण हुआ |

ये खंड और अधिक संकुचित होते गये और इस प्रक्रिया के फलस्वरूप इनका केन्द्रीय भाग भी गर्म होता गया | समय के साथ-साथ धीरे-धीरे धूल के भारी कण घूमती हुई डिस्क के केन्द्रीय भाग में एकत्र होने लगे और गैस बाहर रह गयी |

यही कारण है कि वर्तमान में सौर परिवार के बाह्य ग्रह गैसों से बने है और हल्के विशालकाय पिंड है सौर परिवार के आंतरिक ग्रह शैल से निर्मित है और भारी है |

इसप्रकार अब हमे मालूम हो गया है कि पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई है | लेकिन अभी भी कई ऐसे प्रश्न है जिनका उत्तर दे पाना सम्भव नही है | जैसेकि गैस के बादल कहाँ से आये ? इन बादलों का निर्माण कैसे सम्भव हुआ ? पदार्थ की उत्पत्ति किस प्रकार हुई ? विश्व का प्रारम्भ कैसे सम्भव हुआ ? इन प्रश्नों के उत्तर अभी भी अस्पस्ट है |

अब हम जानेंगें कि पृथ्वी का विकास कैसे हुआ |

पृथ्वी का विकास : पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

पृथ्वी का विकास : पृथ्वी का वर्तमान में जो रूप है वो कई अवस्थाओं से गुजरने के बाद इसे प्राप्त हुआ है | धूल और गैस के गोले से बनी पृथ्वी ने भंवर गति से घूमते हुए द्रव अवस्था का रूप ले लिया |

पृथ्वी के द्रव अवस्था में पहुचने के बाद इसमे मौजूद हल्के पदार्थ नीचे गहराई से निकलकर इसकी आग्नेय सतह पर एकत्र होने लगे | और बाद में वे ठंडे होकर कठोर बनने लगे | परिणामस्वरूप पृथ्वी की ऊपरी परत धीमे-धीमे ठोस शैलों की निर्मित हो गयी | हमारी पृथ्वी की पर्पटी का अधिकांश भाग इन्ही से निर्मित है |

अब इसके बाद पृथ्वी का आंतरिक भाग ठंडा होकर सिकुड़ गया | तदुपरान्त पृथ्वी की बाह्य पर्पटी में सिलवटें आ गयी परिणामस्वरूप पृथ्वी में पर्वत श्रेणियाँ और द्रोणियाँ निर्मित हो गयी |

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अब और अधिक हल्के पदार्थ पृथ्वी की पर्पटी के ऊपर एकत्र होने लगे फलस्वरूप गैसों का वायुमंडल निर्मित हुआ |

गैसों से बने इस वायुमंडल में जब गर्म गैसीय पदार्थ ठंडे होने लगे तब विशालकाय बादलों का जन्म हुआ | ये विशालकाय बादल हजारों वर्षों तक भारी बारिश करते रहें |

बादलों से होने वाली हजारों वर्षों की वर्षा के कारण पृथ्वी में भूपर्पटी की विशाल द्रोणियाँ वर्षा के जल से भर गयी | परिणामस्वरूप विशाल महासागरों का निर्माण हुआ |

इसप्रकार पृथ्वी के अंदर की शक्तियाँ सतह पर चलने वाली हवाओं, होने वाली बारिश और ठंडी बर्फ के साथ मिलकर पृथ्वी के आकार को परिवर्तित करती रही और पर्वतों व महासागरों का निर्माण करती रही |

कभी कभी पृथ्वी के हिलने के कारण पुराने समुद्रों के धरातल ऊपर उठ गये परिणामस्वरूप पहाड़ों के शिखरों का निर्माण हुआ | इसी प्रक्रिया के कारण ही एवरेस्ट पर्वत का जन्म हुआ |

एवरेस्ट पर्वत पर आज भी हमे बर्फ की गहरी सतह के नीचे रीढ़-विहीन जीव के जीवाश्म प्राप्त हो सकते है | यें रीढ़-विहीन जीव कभी किसी प्राचीन समुद्र की तलहटी में रहते थें |

जहाँ तक पृथ्वी पर जीवन का प्रश्न है, जीवन की उत्पत्ति यहाँ बहुत बाद में हुई | पृथ्वी के विकास की आधी अवधि तक में इसमे कोई जीवन उत्पन्न न हुआ और यह निर्जीव व उजाड़ बनी रही |

जीवन की उत्पत्ति सर्वप्रथम महासागरों में हुई | लेकिन यह कह पाना अत्यंत कठिन है कि चमत्कारिक तरीके से जीवन महासागरों में उत्पन्न कैसे हुआ | विद्वान केवल यह ही अंजादा लगाते है कि किसी प्रकार किसी बड़े अणु ने स्वयं ही अपने जैसा दूसरा अणु उत्पन्न कर दिया |

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इस प्रकार जीवन की उत्पत्ति बड़े ही अस्पष्ट रूप में हुई और इसी अस्पष्ट आरम्भ ने पृथ्वी पर जीवन (पौधा व प्राणियों) की रचना की | पृथ्वी पर पाए जाने वाले सर्वप्रथम जीव एककोशिक (जिनका पूरा शरीर केवल एक कोशिका का बना हो |) थें | कालान्तर में बहुकोशिक और जटिल जीवों का विकास हुआ |

जहाँ तक पृथ्वी पर आधुनिक मानव प्रजाति की उत्पत्ति और विकास का प्रश्न है, होमो सेपिएन्स (आधुनिक मानव) की उत्पत्ति पृथ्वी पर लगभग 5 लाख वर्ष पूर्व ही हुई | होमो सेपिएन्स के अंतर्गत समस्त जीवित मानव जातियाँ शामिल हैं |

पृथ्वी पर ही जीवन क्यों सम्भव हुआ : पृथ्वी की उत्पत्ति व विकास की पूरी कहानी

पृथ्वी की उत्पत्ति और विकास की पूरी कहानी : हमारे सामने यह प्रश्न उठता है कि सौर मंडल के सभी ग्रहों में से एकमात्र पृथ्वी पर ही जीवन क्यों उत्पन्न हुआ ? हमारे ग्रह में ऐसी क्या विशेषता है कि केवल यही जीवन पनपा ? इसका उत्तर यह है कि पृथ्वी पर अनेक ऐसी परिस्थितियां मौजूद है जिनके कारण यहाँ जीवन सम्भव हो पाया |

किसी भी ग्रह में जीवन की उत्पत्ति और विकास के लिए अनेक परिस्थितियों का साथ-साथ मौजूद रहना अतिआवश्यक है –

  1. उस ग्रह का ताप ऐसा हो कि जीवन को बनाये रखने वाली रासायनिक अभिक्रियाएँ सम्भव हो सकें | जो केवल पृथ्वी में है |
  2. उस ग्रह में पोषण तत्वों के परिवहन के लिए जल जैसा कोई तरल माध्यम उपस्थित हो | जो मात्र पृथ्वी पर ही है |
  3. उस ग्रह में निर्माण के लिए आवश्यक ऑक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन और नाइट्रोजन उपस्थित हो जिनसे अधिक जटिल अणुओं का निर्माण सम्भव हो सके | जो केवल पृथ्वी में ही है |
  4. उस ग्रह के चारों ओर एक ऐसा रक्षात्मक आवरण उपस्थित हो जो वायुमंडल में हानिकारक विकिरण को प्रवेश न करने दे | जोकि केवल पृथ्वी में ही है |

उपरोक्त कारणों के मौजूद रहने के कारण ही पृथ्वी पर जीवन सम्भव हो सका | पृथ्वी सूर्य से एक उचित दूरी पर स्थित है जिससे पृथ्वी पर जल का शुक्र की भांति पूर्णरूपेण वाष्पीकरण नही हो पता है | यह अपने जल को रोककर रखने में पूर्ण सक्षम है |

पृथ्वी पर मौजूद जल अतिरिक्त कार्बन-डाइआक्साइड को अवशोषित कर लेता है, जो कार्बोनेट चट्टानों के रूप में पृथ्वी को वापस मिल जाती है | पृथ्वी पर मौजूद प्रारम्भिक जीवों ने हमारे वायुमंडल में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के द्वारा अतिरिक्त कार्बन-डाइऑक्साइड को और भी कम कर दिया |

परिणामस्वरूप पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी, और जीवन के उच्चतर रूपों का विकास सम्भव हुआ |

पृथ्वी के धरातल के प्रमुख लक्षण

पृथ्वी के धरातल के प्रमुख लक्षण महासागर और महाद्वीप हैं | पृथ्वी के धरातल का एक बहुत बड़ा भाग जल में डूबा हुआ है | इसके धरातल के एक-तिहाई से भी कम भाग पर ही स्थल मौजूद है |

हमारी पृथ्वी के धरातल पर ऊँचाई में अधिकतम अंतर मात्र लगभग 20 किमी का ही है | पृथ्वी के धरातल के उच्चावच में यह अंतर पृथ्वी के विशालकाय आकार को देखते हुए कम ही है |

पृथ्वी पर मौजूद महासागर व महाद्वीप इधर-उधर अनियमित रूप से फैले हुए है | पृथ्वी के दक्षिण गोलार्ध की अपेक्षा उत्तरी गोलार्ध में स्थल भाग ज्यादा है | पृथ्वी पर मौजूद महासागरों व महाद्वीपों का जो रूप वर्तमान में हमे दिख रहा है वों सदैव ऐसे ही नही था |

महाद्वीपों के विशालकाय भाग लाखों वर्षों तक अन्टार्कटिका और ग्रीनलैंड की तरह बर्फ की मोटी-मोटी चादरों से ढके हुए थें | पृथ्वी का यही काल (अवधि) हिमकाल के नाम से जाना जाता है | समुद्र तल की जो वर्तमान में स्थिति है वो इन मोटी-मोटी चादरों के पिघलने से हुई है, जो कुछ हजार वर्ष पूर्व ही पिघली है |

जब बर्फ की मोटी-मोटी चादरें पिघली नही थी और समुद्र तल नीचा था तब उत्तर अमेरिका और एशिया महाद्वीप परस्पर स्थल सेतुओं से जुड़े हुए थें | वर्तमान में उसी भाग में बैरिंग जलसन्धि है |

जर्मनी के अल्फ्रेड वेगनर नामक विद्वान ने यह विचार रखा था कि पृथ्वी पर मौजूद महाद्वीप एक-दूसरे से दूर खिसक रहें है | अल्फ्रेड वेगनर के इस सिद्धांत को महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धांत नाम दिया गया |

महाद्वीपीय विस्थापन के सिद्धांत के अनुसार लगभग 15 करोड़ वर्ष पहले पैन्जिया (पैंगिआ – Pangea) नामक मात्र एक ही महाद्वीप था | अर्थात् वर्तमान के सभी महाद्वीप आदिकाल में किसी समय मात्र एक विशालकाय महाद्वीप के रूप में थें | पैन्जिया (पैंगिआ) का ग्रीक भाषा में अर्थ है – समस्त भूमि |

कालान्तर में यह विशालकाय महाद्वीप कई खंडों में विभाजित हो गया और यें विभाजित खंड एक-दूसरे से दूर खिसकने लगे | वर्तमान में यह प्रमाणित हो चुका है कि महाद्वीप धीरे-धीरे एक-दूसरे से दूर खिसक रहे है लेकिन केवल 15 सेमी प्रति वर्ष |

प्लेट टैक्टोनिक्स के सिद्धांत ने अब यह स्पष्ट कर दिया है कि महाद्वीप प्लेटों के रूप में अर्ध-द्रवीय सतह पर धीरे-धीरे खिसक रहे है |

अध्ययन में पाया गया है कि उत्तर व दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका व यूरेशिया से अलग होकर पश्चिम की ओर खिसक गये है जिसके फलस्वरूप उत्तर व दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी छोर में मोड़ आ गये और रॉकी व एण्डीज पर्वत श्रृंखलाएं निर्मित हुई |

उत्तर व दक्षिण अमरीका और अफ्रीका व यूरेशिया के मध्य अटलांटिक महासागर का निर्माण हुआ |

इस प्रकार पृथ्वी का जो रूप वर्तमान में मौजूद है वह एक लम्बी प्रक्रिया के बाद इसे प्राप्त हुआ है |

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